Saturday, May 12, 2018

मोहब्बत का नया पैगाम

उसकी  ख्वाहिश ऐसी लगी दिल गुलिस्तां को,
की अपनी सारी ख्वाहिशें कत्लेआम हुई...
दिल खोलकर कर दिया इज़हारे मोहब्बत हमने भी,
क्या हुआ जो बेमतलब की बनाई इज़्ज़त बदनाम हुई...
नाकामी का खौफ है किसे ,किसने सोची है जुदाई,
मैंने तो मान लिया उसे रब उसकी मोहब्बत है अब खुदाई.
दिलोजान की हर हसरत मेरी चाहत की अरमान हुई,
मैं बन बैठा अब जमीन वो मेरी आसमान हुई...
इंतज़ार इज़हार,गुलाब.....
किसको पड़ी है,वो नज़रअंदाज़ करे,या रुख मोड़ ले हमसे,
मेरी वफ़ा है मेरी बन्दगी, मेरी रूह तो उसपे ही कुर्बान हुई,
आंखे मूँद लूं तो ख्वाबों में खिलखिला उठती है वो,
जो रूबरू होक गुजर जाए बस इतने में मेरी चाहत एहतराम हुई...
इंतज़ार इज़हार गुलाब...
कौन कहता है मेरी मोहब्बत का फलसफा अधूरा है,
इन्तज़ारे यार के वास्ते राहों में गुलाब बिखेरा है,
दीदारे यार की इंतज़ा है,वास्ता अपनी मोहबब्बत का दे रखा है,
ख्वाब उसके ही देखती हैं नज़रे किसे खबर है
कब सुबह कब शाम हुई
इस दिल मे ज़िंदा रहेंगी मेरी वफ़ाएँ
मेरा ज़ज़्बा ये ताउम्र इंतज़ार का एक नया पैगाम हुई...
इंतज़ार, इज़हार,गुलाब,ख्वाब,वफ़ा नशा,
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई...
सुप्रिया "रानू"

नोट: मेरी इस कविता की मुख्य पंक्तियाँ 
"इंतज़ार,इज़हार,गाब,ख्वाब,वफ़ा,नशा,
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सारे आम हुई"
रोहिताश घोड़ेला जी की लिखी कविता से उद्घत हैं

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