बुद्ध जयंती पर विशेष
जब भौतिकता में रमनेवाला मन,
चिर शांति में खोना चाहे,
अंतस का कोलाहल जब,
अचलता सा होना चाहे,
लालसाओं से भरा यह मन जब,
सब भूलकर सोना चाहे..,
त्यागकर सब मोहपाश
तुम प्रबुद्ध हो जाओ,
जब घिर जाओ भ्रम तमसो से,
तो अंतर्मन से बुद्ध हो जाओ...
दुनिया के मयाजालों में,
भौतिकता के जंजालों में,
सामाजिक सारे बवालों में,
अंतर्मन तक कोलाहल भर जाए,
क्षणिक प्रतिक्रियाओं से भी,
जब कोई मन क्षिप्त कर जाए,
त्यागकर सब मोहपाश
तुम प्रबुद्ध हो जाओ,
जब घिर जाओ भ्रम तमसों से,
तो अंतर्मन से बुद्ध हो जाओ...
जुटा के सारे सुख संसाधन,
कर न्यौछावर सब प्रेमधन
त्याग,समर्पण कर्तव्यनिष्ठता
देकर भी मन निराशा से भर जाए,
मन चाहे नईं कोंपलें उगाना अंतर्मन में,
करना हो नवनिर्मित कुछ जीवन मे,
त्यागकर सब मोहपाश
तुम प्रबुद्ध हो जाओ,
जब घिर जाओ भ्रम तमसों से,
तो अंतर्मन से बुद्ध हो जाओ....
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