Saturday, May 12, 2018

माँ :तुम्हारी बात

मातृ दिवस पर विशेष जो हर सृजित कृति महसूस करती है, शब्दों में भले हर कोई अभिव्यक्त न कर पाए पर प्रेम सबका वही होता है... एक छोटी सी कोशिश की है उस असीम प्रेम के सागर के लिए जिसके आँचल में जिसके आभास में जिसके एहसास में सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हो रहा...

                 माँ : तुम्हारी बात

दुनिया की तपती धूप में,
तुम्हारे असीम प्रेम की बरसात लिखूं,
मेरे नवसीखिये लड़खड़ाते उठते क़दमों को,
मिले तुम्हारे हाथों का साथ लिखूं,
या फिर तुम्हारे प्यार,दुलार,ममता ,
निर्मल निस्वार्थ प्रेम से,
सिंचित अपने जीवन की सौगात लिखूं..,
         शब्द कम पड़ जायेंगे,
                    माँ
       तुम्हारी चाहे जो भी बात लिखूं..

तुम्हारे दिए आँचल के फूल चुनु,
या सबसे मिले कांटे बिन लूँ,
अपने हृदय में दुनिया की ,
ईश्र्या,नफ़रतें भर लूँ,
या तुम्हारे प्रेम के स्मरण मात्र से,
अपना रोम -रोम पुलकित कर लूँ,
तुम्हारा निस्वार्थ,निश्छल,निर्मल प्रेम लिखूं,
या दुनिया के सौ आघात लिखूं !

      शब्द कम पड़ जायेंगे ।
                माँ
   तुम्हारी चाहे जो भी बात लिखूं।।

कामना यही है,
जीवन के अनगिनत संघर्षों में,
तुम्हारी दी सीख समझ का इस्तेमाल करूँ,
तुम्हारी दी परवरिश से,
स्व अस्तित्व में परिलक्षित
तुम्हारी छवि बेमिशाल करूँ,
सफलताओं,उपलब्धियों,समर्पण,
त्याग के बाद भी,
दुनिया से मिली असंतुष्टियों की जमात लिखूं,
या फिर,
असफलताओं,दुखों निराशाओं में भी,
तुम्हारे आँचल के तले वाली सुकून की रात लिखूं।।

      शब्द कम पड़ जायेंगे ,
       माँ
      तुम्हारी चाहे जो भी बात लिखूं।

अपनी इक्षाओं,खुशियों को मारकर
जिनको अपने हिस्से की खुशियां भी दे दी,
उनसे मिली उलाहनाओ,शिकायतों
वाले हालात लिखूं,
या फिर
अपने हिस्से का निवाला भी मुझे खिलाकर,
अपने प्रेम की थपकियों से मुझे सुलाकर,
मेरे सुकून को देखकर,
काट लेने वाली तुम्हारी
मुस्कुराती रात लिखूं

   शब्द कम पड़ जायेंगे
             माँ
तुम्हारी चाहे जो भी बात लिखूं

सुप्रिया "रानू"

1 comment:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

मातृदिवस की शुभकामनाएँ । मन के आवेग का सुंदर वर्णन किया है आपने।

गौरैया

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